ईरान इजरायल संघर्ष तेल

ईरान इजरायल संघर्षः 5 बड़ी वजहें जो इस जंग को और खतरनाक बना रही हैं

ईरान इजरायल संघर्ष: अब अमेरिका भी मैदान में, कच्चे तेल की क़ीमतें उछलने को तैयार – भारत पर क्या होगा असर?

नई दिल्ली/तेहरान/वॉशिंगटन डीसी – पश्चिम एशिया में चल रहा ईरान इजरायल संघर्ष अब तिहरे मोर्चे की ओर बढ़ गया है, क्योंकि अमेरिका ने भी खुले तौर पर दख़ल देना शुरू कर दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर तनाव और बढ़ा तो अंतरराष्ट्रीय तेल बाज़ार में भारी उथल‑पुथल तय है, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ सकता है।


ईरान इजरायल संघर्ष तेल
ईरान इजरायल संघर्ष तेल

ईरान इजरायल संघर्ष: अमेरिका की एंट्री के बाद बिगड़े हालात, भारत पर दिखने लगे असर, तेल की कीमतें बढ़ने की आशंका

नई दिल्ली/तेहरान/वॉशिंगटन – ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष अब और ज़्यादा गंभीर ईरान इजरायल संघर्ष हो गया है। इस बीच अमेरिका की भी सक्रिय भागीदारी सामने आ रही है, जिससे स्थिति और भी जटिल होती जा रही है। जानकारों का कहना है कि इस युद्ध का सीधा असर ईरान इजरायल संघर्ष वैश्विक कच्चे तेल बाज़ार पर पड़ सकता है, और भारत जैसे देश इस अस्थिरता से प्रभावित हो सकते हैं।

मौजूदा हालात

  • ईरान और इज़राइल के बीच रॉकेट‑ड्रोन हमलों के बाद, अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा खाड़ी क्षेत्र में सक्रिय कर दिया गया है।
  • मिडिल ईस्ट की इस अनिश्चितता ने तेल‑आपूर्ति शृंखलाओं पर दबाव बढ़ा दिया है और बाज़ार में ‘रिस्क प्रीमियम’ लौट आया है।
  • शुरुआती कारोबार में ही ब्रेंट क्रूड 2–3 % चढ़ गया; जैसे‑जैसे हालात बिगड़ते हैं, विशेषज्ञ इसे $90–$95 प्रति बैरल तक जाते देख रहे हैं।

भारत का तेल आयात प्रोफ़ाइल

स्रोत देशमई 2025 (मिलियन बैरल/दिन)जून 2025* अनुमान (मिलियन बैरल/दिन)
रूस1.962.0 – 2.2
इराक0.900.85
सऊदी अरब0.600.55
संयुक्त अरब अमीरात0.320.30
अमेरिका0.280.44

*अनुमान: शिप‑ट्रैकिंग फर्म Kpler के प्रारंभिक आंकड़ों पर आधारित।

भारत विश्व का तीसरा‑सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है और रोज़ाना ~5.1 मिलियन बैरल तेल खरीदता है; इसमें 40–44 % हिस्सेदारी अब रूस से आती है।


तेल की क़ीमतों में उछाल का भारत पर प्रभाव

  1. महंगाई का दबाव
    • पेट्रोल‑डीज़ल और एलपीजी के दामों में बढ़ोतरी उपभोक्ता महंगाई (CPI) को पुनः 6 % से ऊपर धकेल सकती है।
  2. करंट‑अकाउंट घाटा
    • हर $10/बैरल वृद्धि से भारत का आयात बिल सालाना ~$15 अर्ब बढ़ जाता है, जिससे चालू खाता घाटा (CAD) और रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।
  3. सरकारी वित्त
    • अगर केंद्र उत्पाद‑शुल्क घटा कर खुदरा‑दाम काबू में रखता है, तो राजस्व‑संग्रह में कमी का जोखिम रहेगा।
  4. रणनीतिक भंडार नीति
    • ऊर्जा मंत्रालय तटीय कैवर्नों में केवल ~25 दिन के कच्चे तेल का रणनीतिक भंडार रखता है; लंबी अवधि के झटके के लिए यह अपर्याप्त माना जाता है।

शिपिंग और बीमा सम्बन्धी चुनौतियाँ

  • ओमान‑सागर और होर्मुज़ जलडमरूमध्य से गुजरने वाले टैंकरों की संख्या ‑‑ सुरक्षा जोखिम के कारण ‑‑ 69 से घटकर 40 जहाज़ प्रतिदिन रह गई है।
  • बीमा‑प्रीमियम बढ़ने से मालभाड़ा (freight) लागत प्रति बैरल $2–$3 तक ऊँची हो सकती है, जो सीधे रिफाइनरियों की लागत संरचना प्रभावित करता है।

भारत की रणनीतिक चुनौतियाँ व विकल्प

विकल्पसंभावित लाभचुनौतियाँ
रूस‑केंद्रित आयात जारीछूट वाला तेल, मौजूदा लॉजिस्टिक सेट‑अपG7 प्राइस कैप सख्ती, रूसी बंदरगाहों का मौसम‑जटिल मार्ग
मिडिल‑ईस्ट सप्लाई फिर बढ़ानापरिवहन लागत कम, क्रूड की विविधताउथल‑पुथल क्षेत्र में, प्रीमियम दाम
अफ्रीका‑अमेरिका आयात बढ़ानासप्लाई सुरक्षा, अमेरिकी WTI‑Maya ग्रेडडॉलर भुगतान, लंबा समुंद्री मार्ग
वैकल्पिक ऊर्जा (ईवी, ग्रीन H₂)दीर्घकालीन आयात‑निर्भरता घटेगीउच्च शुरुआती पूंजी, धीमा विस्तार

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

सुमित रितोलिया, ऊर्जा विश्लेषक ईरान इजरायल संघर्ष
“शिप‑मालिक खाड़ी क्षेत्र में जहाज़ भेजने से कतरा रहे हैं। अगर युद्ध फैलता है, तो भारत को स्पॉट मार्केट में प्रीमियम कीमत चुकानी पड़ेगी या रणनीति बदलनी होगी।”

डॉ. आकांक्षा मेहरा, ICRIER
“रूस पर निर्भरता आँकड़ों में सही लगती है, पर लॉन्ग‑टर्म में यह एक‑तरफ़ा रणनीति जोखिमपूर्ण है। सरकार को ऊर्जा‑स्रोत विविधीकरण तेज़ करना चाहिए।”


निष्कर्ष

ईरान इजरायल संघर्ष टकराव में अमेरिका की सक्रिय भागीदारी ने वैश्विक तेल‑बाज़ारों को अस्थिर कर दिया है। यदि हालात जल्द नहीं सँभले, तो भारत को तेल‑आयात लागत, महंगाई और रुपया‑दबाव—तीनों मोर्चों पर चुनौती झेलनी पड़ सकती है। नीति‑निर्माताओं के सामने तत्काल कदम यह होंगे कि

  1. रणनीतिक भंडार की भरपाई बढ़ाई जाए,
  2. स्पॉट‑मार्केट खरीद का संतुलन साधा जाए,
  3. और दीर्घकाल में रिन्यूएबल‑पुश को तेज़ किया जाए।

तेल की कीमतों पर असर शुरू

तीनों देशों – ईरान, इज़राइल और अमेरिका – के बीच जारी तनाव के चलते कच्चे तेल की कीमतों में उछाल की आशंका है। बाज़ार में आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो रही है और भारत में आयातित तेल ईरान इजरायल संघर्ष की कीमतों में तेजी देखी जा रही है।

भारत ने हाल के ईरान इजरायल संघर्ष वर्षों में रूस से सस्ते दर पर बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदना शुरू किया है। लेकिन इस संघर्ष का प्रभाव रूस से आने वाली आपूर्ति और शिपिंग रूट्स पर भी पड़ सकता है।


भारत की रणनीति: रूस से अधिक आयात

डेटा एनालिटिक्स फर्म Kpler के अनुसार, भारत ने ईरान इजरायल संघर्ष जून 2025 में रूस से प्रतिदिन 2 से 2.2 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात किया। यह आंकड़ा बीते दो वर्षों का सबसे ऊंचा स्तर है। भारत अब रूस से इतना तेल खरीद रहा है जितना वह पहले इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से संयुक्त रूप से भी नहीं खरीदता था।

मई 2025 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 1.96 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदा था, जबकि अमेरिका से जून में यह आंकड़ा 4.39 लाख बैरल प्रति दिन रहा, जो मई की तुलना में लगभग 57% ज्यादा है।


भारत: तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल आयातक और उपभोक्ता है। देश प्रतिदिन लगभग 5.1 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जिसे रिफाइन करके पेट्रोल, डीज़ल, एटीएफ जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं।

पहले भारत का अधिकांश तेल मिडिल ईस्ट से आता था, लेकिन फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस से आयात में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। पहले जहां रूस का तेल आयात में हिस्सा सिर्फ 1% था, अब यह बढ़कर 40% से भी ज्यादा हो गया है।


ईरान पर हमले का असर

फिलहाल ईरान और इज़राइल के युद्ध का सीधा असर तेल की कीमतों पर बहुत ज्यादा नहीं पड़ा है, लेकिन मिडिल ईस्ट में जहाजों की आवाजाही पर इसका असर दिखने लगा है।

तेल टैंकरों के लिए ओमान की खाड़ी और हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे समुद्री मार्गों पर खतरे की आशंका बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह युद्ध और बढ़ता है, तो तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से ऊपर जा सकती हैं।


शिपिंग में गिरावट, भारत की रणनीति बदल सकती है

भारत के ऊर्जा मामलों के विशेषज्ञ सुमित रितोलिया के अनुसार,

“शिपिंग कंपनियों में खाड़ी क्षेत्र को लेकर चिंता बढ़ गई है। कई जहाज़ मालिक अपने टैंकरों को खाड़ी क्षेत्र में भेजने से कतरा रहे हैं।”

Kpler के मुताबिक, ओमान की खाड़ी से गुजरने वाले तेल टैंकरों की संख्या हाल ही में 69 से घटकर 40 रह गई है, जो इस क्षेत्र में बढ़ते खतरों को दर्शाता है।


निष्कर्ष: भारत को चाहिए रणनीतिक लचीलापन

ईरान इजरायल संघर्ष और अमेरिका की बढ़ती भागीदारी ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा रणनीति को मजबूत बनाए, आपूर्ति के विविध स्रोतों की ओर ध्यान दे और संकट की घड़ी में कच्चे तेल के भंडारण को प्राथमिकता दे।


विशेष नोट: यह समाचार आधारित लेख सार्वजनिक रिपोर्ट्स और एनालिटिक्स पर आधारित है। परिस्थितियां लगातार बदल रही हैं, इसलिए अद्यतन जानकारी के लिए आधिकारिक स्रोतों पर नज़र बनाए रखें।

स्वीकरण (Disclaimer): ईरान इजरायल संघर्ष यह रिपोर्ट विभिन्न मीडिया व शिप‑ट्रैकिंग स्रोतों के आंकड़ों पर आधारित है। आधिकारिक पुष्टि के लिए पाठकों को संबंधित सरकारी एजेंसियों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अद्यतन विवरण पर भरोसा करना चाहिए।

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